Friday, April 16, 2010
क्रूर अँग्रेजी दासता से ग्रस्त देश ने जिस समय पहली बार स्वतंत्रता का स्वप्न देखना शुरू किया था, लगभग उसी समय 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी इलाके में एक महान राष्ट्रवादी का जन्म हुआ। नाम था - बाल गंगाधर तिलक। यूँ तो तिलक के व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं - जैसे एक महान लेखक एवं पत्रकार, समाज-सुधारक, प्रभावशाली वक्ता और उच्च कोटि का समन्वयक, लेकिन एक आम भारतीय के मन में तिलक की छवि ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की है, जिसने जीवन-पर्यन्त देश की स्वतंत्रता के लिए अनथक संघर्ष किया। चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मे और शिक्षक पिता की संतान तिलक को जीवन के सबसे जरूरी समय में माता-पिता का सानिध्य नहीं मिल पाया था। केवल दस वर्ष की अवस्था में ही तिलक की माँ उन्हें छोड़कर चल बसीं और कुछ ही वर्षों के बाद पिता का भी देहांत हो गया। बचपन से ही स्वतंत्रता के पक्षधर रहे तिलक भारत में स्वराज शब्द का उद्घोष करने वाले कुछ चुनिंदा लोगों में शामिल थे‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा।’ आज भी सारे देश में तिलक का वह कथन ख्यात है। सच्चे जननायक तिलक को लोगों ने आदर से लोकमान्य की पदवी दी थी। आधुनिक ढंग से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने वाले तिलक ने स्नातक के बाद वकालत की पढ़ाई पूरी की। पश्चिमी शिक्षा पद्धति से असहमत तिलक ने युवाओं को राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के लिए अपने साथियों विष्णु शास्त्री चिपलनकर और आगरकर के साथ मिलकर ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ की स्थापना की, जो आज ‘दक्कन एजुकेशन सोसायटी’ में तब्दील हो चुका है। इन सब कामों के बीच तिलक लगातार इस प्रयास में रहते कि कैसे देश के लोगों को आभास कराया जाए। जो लोग अँग्रेजी शासन को दैवीय वरदान मानते हैं, कैसे उन्हें अपने भाई-बंधुओं के दु:ख, उनकी तकलीफों से अवगत कराया जाए। तिलक ने इसका हल पत्रकारिता में निकाला और दो साप्ताहिक पत्रों की शुरुआत की।
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Bahut achha aalekh hai!
ReplyDeleteTahe dilse swagat hai...
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